आज राष्ट्रीय पक्षी दिवस है। पक्षी मनुष्य के सह जीवन के सबसे बड़े सहयोगी हैं। पक्षी ही हमें सब सिखाते हैं। बचपन में घर की मुँडेर पर कौआ बोलने पर मेहमान आते थे। घर में भोजन तैयार होने पर तोता और गोरैया का कलरव शुरू हो जाता था।
पके खजूर के पेड़ के नीचे आस लगाकर थोड़ी देर खड़े रहने पर बुलबुल निराश नहीं करती थी। आम को पकाने में हमसे कोयल आगे रहती थी। जामफल के पेड़ पर तोते उड़ते देख हम उस पर पके फल ढूँढ लेते थे। मैना और गलगल के कोलाहल से ध्यान आ जाता कि उधर साँप या कोई खतरा हैं।
गौरैया का धूल में नहाने व पपीहा का रात में बोलने का अर्थ था एक दो दिन में वर्षा होगी। वर्षा ऋतु में आसमान पर बादलों के छाए रहने पर पक्षियों के झुण्ड के झुण्ड उड़ते देख बिना घड़ी के समझ आ जाता कि शाम हो गई है, दोस्तों से कहते जल्दी घर चलो वरना डाँट पड़ेगी।
चील आसमान में मंडराती देख समझ जाते कि कोई पशु मरने वाला है। घर की कवेलू वाली छत पर मोरनी अण्डे दे जाती। गौरेया का तो पूरे घर में अधिकार था। सुबह का जागरण पक्षियों की चहचहाटों से ही होता और शाम कलरव से। हर दिवस पक्षी दिवस था ।
मेरे लिए तो आज भी कुछ नहीं बदला है। सब वैसा का वैसा ही है। हाँ, इतनी समझ बढ़ गई कि बिना पक्षी के मानव जीवन सम्भव नहीं हैं। उन्हें मारकर अपना पेट भरने से नहीं अपितु पक्षियों का पेट भरने से जीव संतुलन रहेगा। भारत सहित विश्व में पक्षियों की अनगिनत प्रजातियां हैं। पक्षी विशेषज्ञों ने उनका वर्गीकरण किया है। ये रंग-बिरंगे पक्षी हमारी धरती और पर्यावरण का श्रृंगार हैं।
बिना पक्षियों का वर्णन किये श्रृंगार लिखा ही नहीं जा सकता। पूरा हिन्दी साहित्य पक्षियों की उपमाओं से अलंकृत है। पक्षी और पेड़-पौधे एक-दूसरे के पूरक हैं। हमसे कई गुना ज्यादा फलों का बीजारोपण पक्षी करते हैं। जंगलों को घना बनाने में सर्वाधिक योगदान पक्षियों का ही है। वे फलों के बीज स्थान्तरण का काम करते हैं।
साथ ही पक्षी प्रकृति के सबसे बड़े स्वच्छताकर्मी है। जहरीले कीड़ों को खाकर वे हमारी फसल की रक्षा करते हैं। पक्षी खाद्य श्रृंखला को नियंत्रित करने का एक बड़ा माध्यम है। कृपया, जहाँ तक हो सके पक्षियों का शिकार होने से रोकिएं, क्योंकि जहाँ पक्षी नहीं होंगे वो स्थान अपने आप निर्जन हो जायेगा।
◆ मोहन नागर, पर्यावरणविद, बैतूल