collapsed twin towers : नोएडा के सेक्टर 93 में बने सुपरटेक के अवैध ट्विन टावर आखिरकार रविवार दोपहर में ढहा दिए गए। इनकी ऊंचाई 100 मीटर से ज्यादा थी। इसके बावजूद दोनों टावर मात्र 12 सेकेंड में जमींदोज हो गए। यह ट्विन टावर ढहने को लेकर पूरे देश में खासी उत्सुकता थी। टावर गिरने का कार्य भारत और दक्षिण अफ्रीका की दो कंपनियों ने मिलकर किया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुपरटेक का एक टावर 29 और दूसरा 32 मंजिला है। इन्हें ढहाने के लिए दोनों टावरों में 9800 छेद किए गए। हर छेद में करीब 1400 ग्राम बारूद डाला गया। कुल 3700 किलो बारूद का इस्तेमाल हुआ। इसमें 325 किलो सुपर पावर जेल 63,300 मीटर सोलर कार्ड, सॉफ्ट टयूब, जिलेटिन रॉड, 10,900 डेटोनेटर और 6 एलईडी शामिल हैं। इस पर करीब 17.55 करोड़ रुपए खर्च हुए। यह खर्च भी सुपरटेक से ही लिया जाएगा।
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आसपास की किसी इमारत को नुकसान नहीं
ट्विन टावर को गिराने के लिए विस्फोट की जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया, उसकी खासियत यह रही कि आसपास की किसी इमारत को नुकसान नहीं पहुंचा। घनी आबादी के बीचोंबीच बने दोनों टावर अपनी जगह पर जमींदोज हो गए और केवल धूल का गुबार ही नजदीकी इमारतों तक पहुंचा।
क्यों गिराए गए यह ट्विन टावर
बताया जाता है कि वर्ष 2004 में नोएडा अथॉरिटी ने सुपरटेक को हाउसिंग सोसाइटी बनाने के लिए प्लॉट अलॉट किया था। यहां पर केवल 10 मंजिल के 14 टावर बनाने की इजाजत थी। लेकिन, यहां 40 मंजिल तक बना डाली गई। इस पर एमरेल्ड गोल्ड सोसाइटी के रेसिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन प्रेसिडेंट उदयभान सिंह तेवतिया ट्विन टावर का मामला कोर्ट में ले गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे आदेश
हाईकोर्ट ने 2014 में ट्विन टावर को अवैध घोषित कर गिराने का आदेश दिया। सुपरटेक बिल्डर ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया और 31 अगस्त 2021 को आदेश दिया। इसी के परिपालन में आज इसे ढहा दिया गया। टावर ढहाने की जिम्मेदारी भारत की एडिफाइस और साउथ अफ्रीका की कंपनी जेट डिमोलिशन को सौंपी गई थी। देखें वीडियो…