प्रतिभा चाहे महानगर की हो या किसी आदिवासी बहुल क्षेत्र के छोटे से गांव की, वह अपना लोहा मनवा कर ही रहती है। इसी तरह जमीन से जुड़े लोग, कभी सफलताओं की चमक और चकाचौंध में अपने अतीत को नहीं भूलते। हाल ही में आईएएस अवार्ड हासिल करने वाले जिले के छोटे से गांव के दिलीप कापसे और उनके पिता व पूरा परिवार इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। आईएएस अवार्ड होने पर इसका पूरा श्रेय श्री कापसे ने जहां पूरे परिजनों, गुरुजनों और सभी सहयोगियों व मार्गदर्शकों को दिया वहीं दूसरी ओर उनके पिता और माता बेटे के सालों से आला अफसर रहने के बावजूद आज भी खुद ही खेत में हल जोतने से लेकर बुआई करने तक का सारा काम करते हैं।
बैतूल जिले के आदिवासी बाहुल्य भीमपुर विकासखंड की रातामाटी ग्राम पंचायत के पडारू (चूनालोहमा ) ग्राम के निवासी दिलीप कापसे (Dilip Kapse) को हाल ही में आईएएस अवार्ड हुआ है। भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा 17 जनवरी को मप्र संवंर्ग के 17 राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में चयन हेतु अधिसूचना जारी की गई है। जिसमें बैतूल जिले के दिलीप कापसे भी शामिल हैं। बैतूल के लाल दिलीप के आईएएस बनने की खबर से उनके गृह ग्राम सहित पूरे जिले में खुशी की लहर दौड़ गई है। जिलेवासियों द्वारा उन्हें फोन कर लगातार बधाई दी जा रही है।
तीन मंत्रियों के रह चुके हैं ओएसडी
भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित दिलीप कापसे की प्राथमिक शिक्षा चूनालोहमा के प्राथमिक, माध्यमिक स्कूल तथा मल्टीपरपज स्कूल बैतूल में हुई। उच्च शिक्षा शासकीय कला वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर में हुई। 1998 में राज्य प्रशासनिक सेवा में चयनित होने के बाद श्री कापसे अपने सेवाकाल में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। श्री कापसे तात्कालीन वनमंत्री सरताज सिंह, आदिम जाति कल्याण मंत्री कुंवर विजय शाह एवं उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी के ओएसडी रह चुके हैं। इसके अलावा वे खंडवा, पंधाना, बुरहानपुर, सारंगपुर, खिचलीपुर, हरदा, टिमरनी, खिरकिया, बड़वाह, मंडलेश्वर में एसडीएम, मप्र बीज निगम में सचिव, कमिश्नर नगर निगम खंडवा, बालाघाट, झाबुआ, धार, श्योपुर में एडीएम, सीईओ जिला पंचायत झाबुआ, संयुक्त संचालक श्रम विभाग इंदौर, सचिव रेरा के पदों पर पदस्थ रह चुके है। प्रशासनिक सेवा में चयन होने के दौरान वर्तमान में श्री कापसे चीफ जनरल मैनेजर मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड भोपाल के पद पर पदस्थ हैं।
मां के सपनों को किया साकार
बैतूल जिले के सुविधा विहीन पडारू (चूनालोहमा) ग्राम में पढ़े लिखे आईएएस दिलीप कापसे ने अपनी मां के सपने को साकार किया है। आईएएस अवार्ड होने पर श्री कापसे ने इंदौर में पढ़ाई के दौरान उनके पिता नत्थू कापसे एवं मां जया बाई कापसे द्वारा 21/8/1993 को भेजे गये अंतर्देशीय पत्र का जिक्र करते हुए बताया कि मां उन्हें श्रवण कुमार के नाम से बुलाती थी। मां ने पत्र में लिखा था घर की बिल्कुल भी चिंता न करके पढ़ाई पर ध्यान देना और कलेक्टर बनना। कड़ी मेहनत कर श्री कापसे ने आईएएस बनकर अपनी मां के सपने को साकार किया है।
मार्गदर्शकों और सहयोगियों का माना आभार
कड़े संघर्ष के दौर से गुजर कर राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा का मुकाम हासिल करने वाले आईएएस दिलीप कापसे ने अपनी सफलता के लिए मार्गदर्शकों एवं सहयोगियों का आभार माना है। उन्होंने अपने पिता नत्थू कापसे, माता जया बाई कापसे, बड़े भाई अशोक कुमार कापसे, छोटी बहन राधिका पाटिल, प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय चूनालोहमा के शिक्षकों रामराव मगर, प्रीतम सिंह ठाकुर, प्रेमलाल चौहान, बाबूलाल आर्य, व्यंकट ठाकरे, झोड़ सर, स्व. शिशु कुमार पाल सर, बहुउद्देशीय उमावि बैतूल के प्राचार्य, पाण्डे सर, श्री शर्मा, श्री आजमानी, श्री दुबे सहित अन्य शिक्षकों, शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर के प्राचार्य व कुलपति रहे सुरेन्द्र सिंह चंदेल, प्रो. नागर, मंडलोई सर, महाशब्दे सर, मिश्रा मेडम, सुल्तान बेग सर, उपाध्याय सर, दवे सर, जयंती लाल भण्डारी सर, आईपीएस शशीन्द्र चौहान, प्रोफेसर सत्यप्रभा दीदी, रमेश चौहान, श्रीमती रमा देवी चौहान, डॉ. रश्मि चौहान, डॉ. सुरेश चौहान, निर्मला वर्मा अम्मा जी, स्व. बब्बा जी, प्रोफेसर विवेक वर्मा, अर्चना भाभी, परम मित्र मनीष महंत, खुशनूद उस्मानी, मुकेश सिंह गौर, मनीष वशिष्ठ, अजीत जैन, जैन अंकल, संजय दुबे, जीतू पटवारी, जितेन्द्र चौधरी, मनीष खोड़े, कैलाश वानखेड़े, नीरज वशिष्ठ, बुद्धेश वैद्य, जमनेजय महोबे, विवेक कासट, संदीप दीक्षित, धनंजय शाह, जितेन्द्र पंवार, शेर सिंह गिन्नारे, भाभीजी विनीता गिन्नारे, धर्मपत्नी कविता भाभी, संगीता कापसे, बेटे ईशान कापसे तथा बेटी अनन्या सहित परिजनों, शिक्षकों, साथी अफसरों, सामाजिक बंधुओं, ईष्ट मित्रों के प्रति आभार व्यक्त किया है।
परिवार आज भी जीता है सादा जीवन
जाहिर है कि श्री कापसे को आईएएस अवार्ड भले ही अभी हुआ हो, लेकिन आला अफसर वे बरसों से हैं। इन सबके बावजूद उनका पूरा परिवार आज भी बेहद सादा जीवन जीता है। उनके माता-पिता को देखकर लगता ही नहीं कि उनका बेटा इतना बड़ा अफसर (और अब आईएएस) है। वे आज भी पहले की तरह अपने खेत जाते हैं और सामान्य किसान की तरह खेत में जुताई, बुआई, निंदाई, गुड़ाई यह सभी काम खुद ही करते हैं। लोगों को जब उनके बेटे के बारे में जानकारी लगती है तो वे भी उनकी सीधी, सरल जीवन शैली के कायल हो जाते हैं।
कड़े संघर्ष के बाद बनाया बेटों को काबिल
पिता नत्थू कापसे को पूरा इलाका नत्थू भाऊ के नाम से ही जानता है। नत्थू भाऊ के संघर्ष की लंबी कहानी है। 1975 में वे प्रभुढाना गांव के नाथूराम पोटे के यहाँ दूध के काम में जुड़े और पांच साल तक सायकल से सौ लीटर दूध बैतूल लेकर जाते थे। वे घाना, आमढाना, पिपरिया, चुनालोमा, प्रभुढाना से दूध एकत्रित कर बैतूल लेकर जाते थे। फिर पांच साल तक वे स्वर्गीय तुकाराम येवले के साथ दूध लेकर गए। इसके बाद 1985 से 1990 तक स्वयं का दूध का कारोबार शुरू किया।उनकी बैतूल के गंज, खंजनपुर, कोठी बाजार, टिकारी, सदर की हर गली में दूध की चंदी थी। सुबह 6 से दोपहर 2 बजे तक वे घर-घर जाकर दूध देते थे। तब कहीं 100 रुपये महीना मिलता था। बाद में वे अपनी पुश्तैनी खेती में लग गए। आज भी वे खेत में रोज आते हैं। एक बेटा जोगली के हाई स्कूल में लेक्चरर के पद पर है। इसके बावजूद नत्थू भाऊ खेत में ही मगन रहते हैं। वे और उनकी पत्नी बड़ी ही सहजता से कहते हैं कि अपने को गांव में ही अच्छा लगता है। भोपाल जाती भी हूं पर हफ्ते-पन्द्रह दिन में ही गांव की याद आती है तो वापस आ जाती हूँ। दिलीप आने नहीं देता है गांव पर मैं मना लेती हूं।