खजराना गणेश मंदिर : ढाई करोड़ के गहनों से होता है गणपति बप्पा का श्रृंगार, दोनों आंखें भी हीरे की, यहां बनाते हैं उल्टा स्वास्तिक

Khajrana Ganesh Mandir Indore 0

▪️ लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)

इंदौर के खजराना गणेश (Khajrana Ganesh Mandir Indore) पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। खजराना गणेश मंदिर की महिमा ऐसी है कि इनके भक्त देश ही नहीं विदेश में भी हैं। इस मंदिर में सब कुछ अद्भुत है। खजराना गणेश मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान की चौखट पर पट ही नहीं हैं। भक्तों के लिए ये मंदिर 24 घंटे खुला रहता है। श्री गणपति अथर्वशीष (Shri Ganapathi Atharvasish) का जाप यहां पर 35 सालों से जारी है। 233 साल पुराने मंदिर (233 year old temple) में प्रतिवर्ष सवा करोड़ से ज्यादा भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं। 16 एकड़ में फैले मंदिर परिसर में अन्न क्षेत्र है, जहां रोज एक हजार लोगों को मुफ्त भोजन कराया जाता है। 1785 में बने इस मंदिर में चमत्कारी मूर्ति है।

औरंगजेब से बचाने के लिए कुएं में छुपाई मूर्ति

खजराना गणेश मंदिर चमत्कारी मंदिर है। भगवान गणेश की यहां स्वयंभू मूर्ति है। इसे औरंगजेब (Aurangzeb) से बचाने के लिए कुएं में छुपा दिया गया था। औरंगजेब हिंदू मंदिरों को तोड़ने पर अड़ गया था। इसलिए जब वो अपनी सेना के साथ मालवा (Malwa) आया तो भगवान गणेश की मूर्ति को कुएं में छुपा दिया गया था। इस्लामिक आक्रांता और मुगल शासक औरंगजेब (Mughal ruler Aurangzeb) अपनी कट्टर प्रवृत्ति के चलते हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने का प्रण ले चुका था। खजराना गणेश मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा कहाँ से उत्पन्न हुई और किसने स्थापित की, इसका कोई प्रमाणिक साक्ष्य मौजूद नहीं है। मान्यता है कि यह प्रतिमा स्वयंभू है जो उसी स्थान पर स्थापित हुई थी, जहाँ आज वर्तमान मंदिर स्थित है।

देवी अहिल्याबाई ने कुएं से निकाली मूर्ति

भगवान गणेश की यह प्रतिमा कई सालों तक कुएँ में ही रही। फिर इंदौर में देवी अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar in Indore) का शासन प्रारंभ हुआ। माता अहिल्याबाई अपनी ईश्वर भक्ति के लिए पूरे देश में जानी जाती थीं। उन्होंने देश के कई प्रसिद्ध मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। उन्हीं के शासनकाल के दौरान एक बार पंडित मंगल भट्ट (Pandit Mangal Bhatt) को स्वप्न हुआ और उन्हें कुएँ में भगवान गणेश के होने का पता चला। उन्होंने यह बात माता अहिल्याबाई तक पहुँचाई। उन्होंने न केवल कुएँ से भगवान गणेश की उस दिव्य प्रतिमा को निकाला, बल्कि उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। उसी मंदिर को आज हम खजराना गणेश मंदिर के नाम से जानते हैं।

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उल्टा स्वास्तिक बनाने की अनूठी परंपरा

खजराना गणेश मंदिर से जुड़ी एक अनूठी परंपरा है। यहां पर गणेश जी की पीठ की ओर बनी दीवार पर गोबर या सिंदूर से उल्टा स्वास्तिक बनाया जाता है। भक्त गणेश जी से मनोकामना पूर्ति के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। जब उनकी इच्छा पूरी हो जाती है तो दोबारा मंदिर आकर सीधा स्वास्तिक बनाते हैं। खजराना गणेश मंदिर में नवजात शिशुओं (newborn babies) के वजन के बराबर लड्डू का भोग लगाया जाता है।

खजराना गणेश सबसे धनी मंदिरों में से एक

खजराना गणेश का ढाई करोड़ के गहनों से श्रृंगार (Make up with jewelery worth 2.5 crores) किया जाता है। ये देश के सबसे धनी मंदिरों में शामिल है। भक्तों के चढ़ावे की वजह से यहां चल और अचल संपत्ति भरपूर है। मंदिर की दान पेटी में विदेशी मुद्राएं भी निकलती हैं। दान पेटी से करोड़ों रुपए का चढ़ावा निकलता है। लोग जेवर और प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री भी खजराना गणेश को अर्पित करके जाते हैं।

खजराना गणेश की हीरे की आंख

खजराना गणेश मंदिर में लोगों की भारी आस्था है। भगवान गणेश की दोनों आंखों हीरे की (diamond eyes) हैं। ये हीरे की आंखें इंदौर के ही एक व्यापारी ने दान की थीं। गर्भगृह की दीवारें और छत पर चांदी मढ़ी हुई है। भक्त सोना-चांदी और जेवरात दान करते रहते हैं। इसमें भारतीय ही नहीं विदेशी भक्त भी शामिल हैं।

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सेफ भोग प्लेस खजराना गणेश मंदिर

खजराना गणेश का आशीर्वाद लेने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं। खजराना गणेश मंदिर को भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने सेफ भोग प्लेस भी घोषित कर रखा है। इसका मतलब है कि यहां मिलने वाला लड्डू प्रसाद और अन्न क्षेत्र का भोजन गुणवत्तापूर्ण और शुद्ध है।

उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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