▪️उत्तम मालवीय, बैतूल
जिले के छात्रावासों में अधीक्षकों (hostel superintendents) की नियुक्ति में नियम कायदों को ताक पर रख दिया जाता हैं। नियुक्ति को लेकर आला अफसरों के आदेश रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिए जाते हैं। ऐसे में छात्रावासों की व्यवस्था सुधरने की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है। नियक्तियों में होने वाला गड़बड़झाला (mess of appointments) छात्रावासों की व्यवस्था की ओर अफसरों का ध्यान ही नहीं जाने देता।
जिले में जनजातीय कार्य विभाग के करीब 140 छात्रावास हैं। वैसे तो इन छात्रावासों में अधीक्षकों की नियुक्ति को लेकर शासन के साफ-साफ आदेश हैं। लेकिन, इनका पालन शायद ही किया जाता है। वर्ष 2017 में तत्कालीन आयुक्त दीपाली रस्तोगी ने सभी सहायक आयुक्तों को पत्र लिखकर इस बात पर नाराजगी जताई थी कि छात्रावास और आश्रमों में पूर्णकालिक अधीक्षकों एवं संविदा अधीक्षक या अधीक्षक के पद पर अन्य शिक्षकों की पदस्थापना किए जाने में दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है। उस पत्र में उन्होंने इन निर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाना सुनिश्चित करने को कहा था।
पत्र में साफ कहा गया था कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रावासों और आश्रमों में पदस्थ अधीक्षकों, संविदा अधीक्षकों एवं अन्य शिक्षक जो अधीक्षक का काम कर रहे हैं, उनको अधिकतम तीन वर्ष की अवधि के लिए ही पदस्थ किया जाएं। तीन वर्ष की पदस्थापना के उपरांत अधीक्षकों व संविदा शाला शिक्षकों को स्कूलों में वापस पदस्थ किया जाएं। उसके बाद कम से कम 3 साल बाद ही पुन: छात्रावास या आश्रमों में पदस्थ किया जाएं।
इसके अलावा एक अन्य निर्देश यह दिया गया था कि अनसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ा वर्ग व अन्य वर्ग के अधीक्षकों की पदस्थापना के स्थान पर अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के अधीक्षक या संविदा शिक्षक वर्ग-2 के शिक्षकों की ही पदस्थापना की जाएं। यह निर्देश हर साल ही लगातार जारी किए जाते हैं। हालांकि इनका पालन करने को लेकर लगता नहीं कि जिले के अधिकारी जरा भी गंभीर हो।
जिले में ऐसे कई छात्रावास हैं जहां पर 3 साल नहीं बल्कि 5-5, 6-6 साल और उससे भी अधिक समय से अधीक्षक जमे हुए हैं। केवल ग्रामीण अंचलों में ही नहीं बल्कि शहर के ही कई छात्रावासों में यह स्थिति बनी हुई है। एक बार अधीक्षक जो पदस्थ होते हैं तो वे हटते ही नहीं। यही नहीं कई छात्रावास ऐसे हैं जहां सामान्य या पिछड़ा वर्ग के शिक्षक सालों से अधीक्षक के रूप में पदस्थ हैं।
बताया जाता है कि कई शिक्षक स्कूलों में पढ़ाने के बजाय अधीक्षक बनने में ज्यादा रूचि लेते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि अधीक्षक नियुक्ति में बड़ा खेल होता है। यही कारण है कि फिर इन्हें बनाए रखने के लिए सारे नियम कायदों को ताक पर रख दिया जाता है। अधिकांश तो कई-कई दिनों तक छात्रावास की ओर झांक कर भी नहीं देखते। इसके बावजूद अधिकारी भी उनकी कार्यप्रणाली की ओर कोई ध्यान नहीं देते और न ही उनका ध्यान छात्रावासों की व्यवस्था की ओर ही जाता है।