बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित है खेड़ला किला। किले में प्राचीन शिव मंदिर है। यहां आज महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगा है। जिसमें जिले भर से आए लोग भोले बाबा की पूजा अर्चना कर रहे हैं और मेले का आनंद उठा रहे हैं। इस किले और मंदिर के बारे में थोड़ा बहुत आपने सुना ही होगा। आज हम इस बारे में विस्तार से आपको जानकारी दे रहे हैं। जिससे आप इसके ऐतिहासिक महत्व से भली भांति वाकिफ हो सकेंगे।
यह ऐतिहासिक धरोहर गोंड राजाओं का गढ़ माना जाता है। मुकुंदराव स्वामी द्वारा रचित मराठी ग्रंथ विवेक सिंधु के अनुसार ईसवी शताब्दी 997 में खेड़ला के राजा इल की राजधानी एलिजपुर (वर्तमान अचलपुर) थी। खेड़ला किला के प्रथम गोंड राजा नरसिंह राय तथा अंतिम राजा जैतपाल हुए।
राजा जैत पाल एवं मुकुंदराव स्वामी के विषय में ऐसा कहा जाता है कि राजा जैतपाल ने अपने राज्य के सभी साधु-संतों, मौलवियों, बाबाओं, सन्यासियों, एवं फकीरों को आदेश दिया था कि वे जिसे भी मानते हैं, उसका चमत्कार दिखाएं। अन्यथा उन्हें कालकोठरी में डाल दिया जाएगा।
इस दौरान यहां बनारस से आए स्वामी मुकुंद राय की भेंट राजा से हुई। उन्होंने राजा जैतपाल की शर्त के अनुसार चमत्कार दिखाना शुरू कर दिया। उनके स्पर्श मात्र से ही गैची, फावड़ा, कुल्हाड़ी, सब्बल अपने आप चलने लगे। इसे देखकर राजा जैतपाल ने स्वामी जी को अपने दरबार में सर्वोच्च स्थान दिया। मुकुंदराव स्वामी जी ने इस दौरान विवेक सिंधु नामक ग्रंथ की रचना यहां से ही की।
खंडहर में तब्दील हो चुका है किला
पुरातत्व विभाग की उपेक्षा से वर्तमान में यह किला खंडहर में तब्दील हो चुका है। वर्तमान सांसद लोकसभा में किले का जीर्णोद्धार कराने संबंध में प्रश्न भी पूछ चुके हैं। आज इस किले की बची दीवारें चीख-चीख कर बदहाली और जर्जर अवस्था का चीत्कार कर रही है।
तालाब के बीच धंसा है सूर्य मंदिर
राजा इल की नगरी में कई संत महात्मा आए। राजा की आवभगत से प्रसन्न होकर एक महात्मा ने राजा को चमत्कारी पारस पत्थर भेंट किया। किले के सामने 22 हेक्टेयर का तालाब था। कहा जाता है इसी के बीच सूर्य मंदिर धंसा हुआ है। इस मंदिर के लिए कई बार खुदाई हो चुकी है।
बीच तालाब में मंदिर होने के कारण उसके चारों ओर हजारों टन मिट्टी के मलबे आज तक कोई पूर्ण रूप से निकाल नहीं पाया। यह सोने का सूर्य मंदिर भी उसी महात्मा के आदेश देने पर राज्य में सूखा अकाल के निदान पर एवं सूर्य के तप को कम करने तथा राज्य में कभी पानी की कमी नहीं आए, इसलिए बनवाया गया था। तालाब खुदवा कर मंदिर बीचोबीच स्थापित कराया था।
पारस पत्थर और गोरे अंग्रेज
राजा जैतपाल को महात्मा ने जो पारस पत्थर दिया था उससे लोहे से छूने पर वह सोना बन जाता था। जो किसान लगान नहीं चुकाते थे राजा उनसे बदले में लोहे की वस्तु लेकर उसे अमूल्य पारस मणि से छुआ कर सोना बना देता था और अपने किले में गुप्त रूप से छुपा दिया करता था।
मुगलों के आक्रमण के बाद राजा ने इस अमूल्य मणि को रावणबाड़ी के तालाब में फेंक दिया था। ऐसा कहा जाता है कि किले से एक सुरंग थी रावण बाड़ी के तालाब के बीचो-बीच तक। बाद में गोरे अंग्रेजों ने पारसमणि पाने के उद्देश्य चार हाथियों के पैरों में लोहे की साकल बांधकर तालाब के अन्दर चारों ओर घुमाया था। जिसमें एक हाथी की सोने की बन गई थी मगर पारस पत्थर ना तो मुगलों को मिला ना ही गोरे अंग्रेजों को और ना ही आज तक के कलयुगी इंसान को।
ऐसा कहा जाता है कि कई लोग खजाने और पारस पत्थर के लालच में यहां आए मगर कोई भी यहां की चवन्नी तो दूर एक पत्थर भी वापस लेकर जीवित नहीं लौट सका। यहां महाशिवरात्रि पर आसपास के ग्रामीणों द्वारा आयोजित होता है विशाल भंडारा एवं मेले का आयोजन, जिसमें आसपास के हजारों ग्रामीण पहुंचते हैं।
मात्र 10 किमी दूर, नहीं पक्की सड़क
खेड़ला किला पहुंचने के लिए बैतूल-आमला मार्ग पर खेड़ली जोड़ से किला तक तीन किमी कच्चा मिट्टी युक्त मार्ग है। यह इतना जर्जर है कि गत दिनों असमय आई बारिश में ही दलदल हो गया था। बरसात में तो इस पर चलना दूभर है।