बंटवारा चाहे देश का हो, परिवार का हो या लोगों का हो, यह हमेशा दुःखद ही होता है। वजह यह है कि जोड़ता नहीं बल्कि तोड़ता है, आपस में मिलाता नहीं बल्कि बांटता है। इन सबके विपरीत हाल ही में बैतूल में हुआ एक बंटवारा सहानुभूति, संवेदनशीलता, एकता और अपनत्व की मिसाल बन गया है। एक छोटे से गांव में पारिवारिक आत्मीयता और अपनों की जिम्मेदारी उठाने जैसी भावना की नींव पर हुए इस बंटवारे ने रिश्तों की एक नई इबारत पेश की है। इस पहल ने अपने मुखिया को खो चुके एक परिवार की भविष्य को लेकर सारी चिंताएं ही समाप्त कर दी।
मामला बैतूल के आदिवासी विकासखंड भीमपुर की जामुनढाना पंचायत के ग्राम खैरा का है। यहाँ के आदिवासी चैतू इवने की पिछले 17 जनवरी की सुबह हार्ट अटैक से मौत हो गयी। चैतू के चार बच्चे हैं। जिनमें एक बेटी की शादी हो चुकी है। जबकि तीन बच्चे अभी नाबालिग हैं। इनमे दो बेटियां और एक बेटा शामिल है।
परवरिश की खड़ी हो गई थी चिंता
चैतू की मृत्यु के बाद परिवार के सामने बच्चों की परवरिश का बड़ा सवाल आ खड़ा हुआ। इस पर मृतक के भाइयों ने बड़ी नजीर पेश कर डाली। उन्होंने 17 साल की सविता इवने, 15 साल की कविता इवने और 13 साल के राकेश को गोद ले लिया।
मौत के महज 3 दिन बाद ले लिया गोद
चैतू की मौत के महज तीन दिन बाद उनके घर पर जाति समाज की पंचायत बैठी और तीनों बच्चों को तीन भाइयों ने गोद ले लिया। जहां चेतराम ने राकेश को गोद ले लिया तो वहीं करण ने कविता और चैपा ने सविता का जिम्मदारी उठा ली। खास बात यह है कि भाइयों ने अपनी संताने होने के बावजूद अपने मृत भाई के बच्चों को अपना लिया। इनमें दोनों लड़कियां पढ़ाई छोड़ चुकी हैं जबकि राकेश आठवीं में पढ़ रहा है। छोटे से गांव के इन ग्रामीणों की इस संवेनशील पहल के अब दूर-दूर तक चर्चे हैं।